कहां बनती हैं असली कोल्हापुरी चप्पल? जानें कैसे कर सकते हैं असली-नकली की पहचान

कोल्हापुरी चप्पलें इस वक्त सुर्खियों में बनी हुई हैं, क्योंकि हाल ही में इटैलियन फैशन हाउस प्राडा ने एक फैशन शो में कोल्हापुरी जैसी चप्पलें शो कीं. इस पर कुछ लोगों ने कोल्हापुरी का सम्मान माना तो वहीं कुछ लोगों इस पर इसलिए आपत्ति जताई, क्योंकि उन्होंने शो में भारत का कोई जिक्र नहीं किया था. कोल्हापुरी चप्पलें सिर्फ भारत की संस्कृति का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि इनका यहां की मिट्टी और समाज से गहरा ताल्लुक है. इन चप्पलों का इतिहास बहुत पुराना है और ये शाहू महाराज के जमाने से मशहूर हुई हैं. चलिए जानें कि असली कोल्हापुरी चप्पलें कहां बनती हैं और इनकी असली-नकली की क्या पहचान है.
कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास
इन चप्पलों के बनने की शुरुआत 12वीं शताब्दी से मानी जाती है. ये चप्पलें चमड़े की बनती हैं और अपनी खास डिजाइन के लिए जानी जाती हैं. इनको बनाने से लेकर इनके ऊपर रंग चढ़ाने सभी चीजों के लिए प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है. इन चप्पलों में किसी भी तरह की अर्टिफिशियल चीजों का इस्तेमाल नहीं होता है. पुराने समय में ये चप्पलों किसानों से लेकर राजघरानों के लोग भी इन चप्पलों का इस्तेमाल करते थे और इनको पहनने के शौकीन हुआ करते थे. शाहू महाराज के शासनकाल में इन चप्पलों को कोल्हापुरी चप्पल के रूप में खास पहचान मिली थी. कहा जाता है कि खुद शाहू महाराज इन चप्पलों को पहना करते थे.
कहां और कैसे बनती हैं असली कोल्हापुरी चप्पलें
ये चप्पलें कोल्हापुर में तैयार की जाती हैं, इसलिए इनका नाम कोल्हापुरी चप्पलें है. कोल्हापुर में इनको चप्पलों की बजाय कोल्हापुरी पायताण के नाम से भी जाना जाता है. चमड़े से बनी और प्राकृतिक रंगों में रंगी ये चप्पलें महाराष्ट्र की गर्म और कठोर जलवायु में लंबे वक्त तक टिकी रहती हैं. इन चप्पलों में लकड़ी के तलवे होते हैं, इन पर पंजों और पंजों को जोड़ने वाली पट्टियां लगी होती हैं. कुछ में मोतियों और लटकनों से भी सजाया जाता है. इन चप्पलों को बनाने कि शुरुआत भैंस की खाल से होती है, जिसको बबूल की छाल और चूने जैसी नेचुरल चीजों से तैयार किया जाता है. इसके बाद चमड़े को मनमुताबिक आकार में काटा जाता है और फिर उसे सूती या फिर नायलॉन के धागे से बुना-सिला जाता है. सिलाई करने के बाद इन पर परंपरागत रूप से कढ़ाई की जाती है और फिर बारीक छेद किए जाते हैं. बाद में नेचुरल तेल की मदद से उनको फ्लेक्सिबल बनाया जाता है.
कैसे हो असली-नकली की पहचान
असली-नकली की पहचान करने के लिए कुछ चीजों पर ध्यान देना होता है, जैसे कि ये चप्पलें आमतौर पर हाथ से बनी होती है और उनमें अच्छी क्वालिटी के चमड़े का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा रंग, कढ़ाई और सिलाई पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है. नकली चप्पलें अक्सर प्लास्टिक या फिर सिंटेथिक चीजों से बनी होती हैं. असली चमड़े की तेज गंध होती है, जो कि सबसे पहली पहचान है. असली कोल्हापुरी हाथों से बनी होती है और इसमें बारीकी के काम किया जाता है. इनकी सिलाई मजबूत होती है. असली चप्पलें आमतौर पर प्राकृतिक तेल या फिर पॉलिश की हुई होती हैं, जबकि नकली चप्पलें अलग-अलग रंगों में होती हैं. असली कोल्हापुरी अलग तरह से आवाज करती है. ये आवाज चप्पलों के नीचे की परतों के बीच रखे गए बीज की वजह से होती है. नकली चप्पलों में यह आवाज नहीं होती है.
यह भी पढ़ें: पृथ्वी के पास हैं कितने चंद्रमा, क्या हर ग्रह का अलग होता है चांद?
What's Your Reaction?






