क्या आप जानते हैं? फांसी की सजा का सामना कर रही निमिषा प्रिया का गुनाह क्या है, उसे बचाना क्यों मुश्किल है

यमन की जेल में बंद भारतीय नर्स निमिषा प्रिया इन दिनों चर्चा में हैं. निमिषा प्रिया को यमन में फांसी की सजा सुनाई गई है. फांसी की तारीख 16 जुलाई मुकर्रर की गई है. इस बीच भारत में कई संगठन व विपक्ष के नेता निमिषा प्रिया के मामले में भारत सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि भारत सरकार को मामले में हस्तक्षेप कर निमिषा प्रिया को वापस लाना चाहिए. ऐसे में पहले यह समझना जरूरी है कि निमिषा प्रिया यमन की जेल में क्यों बंद हैं? उन पर आरोप क्या हैं? और भारत सरकार द्वारा उन्हें बचाना इतना मुश्किल क्यों है?
2008 में पहुंची थीं यमन
केरल की रहने वाली निमिषा प्रिया 2008 से यमन में हैं. वह नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद यमन पहुंची थीं और यहां नर्स के रूप में काम कर रही थीं. हालांकि, 2011 में वह केरल वापस लौटीं और टॉमी थॉमस से शादी कर ली. शादी के बाद निमिषा प्रिया अपने पति के साथ यमन वापस लौट गईं. इस बीच दोनों की एक बेटी भी हुई. हालांकि, 2014 में छिड़े गृह युद्ध में निमिषा के पति टॉमी थॉमस अपनी बेटी के साथ केरल वापस लौट आए, लेकिन निमिषा यमन में ही रहीं.
2015 में खोला अपना क्लीनिक
निमिषा प्रिया ने 2015 में यमन के सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी छोड़कर एक लोकल बिजनेसमैन तलाल अब्दो मेहदी से शादी कर ली और उनके साथ पार्टनरशिप में खुद का एक क्लीनिक खोला. यमन के अदालती दस्तावेजों के अनुसार, जुलाई 2017 में निमिषा प्रिया ने तलाल अब्दो मेहदी को बेहोश कर उनकी हत्या कर दी और एक अन्य नर्स के साथ मिलकर उनके शरीर के कई टुकड़े कर उसे पॉलीथीन में भरकर जमीन में एक टैंक में डाल दिया. जब मेहदी की हत्या का राज खुला तो निमिषा की गिरफ्तारी हुई.
कोर्ट ने सुनाई मौत की सजा
यमनी नागरिक की हत्या का मामला कोर्ट पहुंचा, जहां निमिषा ने हत्या की बात कबूल की. यमन की ट्रायल कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई, जिसे निमिषा ने यमन के सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी सजा को बरकरार रखा. इसके बाद निमिषा ने यमन के राष्ट्रपति से माफी देने की अपील की, लेकिन इस अपील को ठुकरा दिया गया. अब निमिषा की फांसी की तारीख भी मुकर्रर कर दी गई है.
निमिषा को बचाना क्यों मुश्किल?
यमन में हत्या के जुर्म में मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि, यहां का कानून इस्लामी कानून के अनुसार चलता है, जिसमें ब्लड मनी देकर दोषी को बचाया जा सकता है. दरअसल, ब्लड मनी वह रकम है जो मृतक के परिवार को आरोपी की ओर से मुआवजे के तौर पर दी जाती है. अगर मृतक का परिवार ब्लड मनी लेने के लिए राजी हो जाता है, तो फांसी की सजा माफ की जा सकती है. हालांकि, मेहदी के परिवार ने ब्लड मनी लेने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें बचाने का आखिरी विकल्प भी खत्म हो गया. इस तरह उन्हें बचाने के सारे लीगल प्रयास विफल होते गए.
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