किरेन रिजिजू ने शेयर किया चाणक्य का वीडियो, कांग्रेस पर साधा निशाना - शरणार्थियों को लेकर छिड़ी नई बहस

Kiren Rijiju targets Congress: केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला. उन्होंने दूरदर्शन के मशहूर 90 के दशक के टीवी शो ‘चाणक्य’ का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें मौर्य साम्राज्य की राजसभा में यह बहस होती दिखाई दे रही है कि शरणार्थियों को शरण दी जाए या नहीं.
कांग्रेस को बताया ‘अवैध घुसपैठियों’ का समर्थक
रिजिजू ने वीडियो के साथ लिखा, 'कांग्रेस पार्टी को अवैध घुसपैठियों का समर्थन करते देख यह दृश्य याद आ गया. 2000 साल पहले की गई गलती को अब नहीं दोहरा सकते. हम अवैध प्रवासियों को अपने वोटर लिस्ट में शामिल नहीं कर सकते.' उनका यह बयान बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट संशोधन अभियान और कांग्रेस द्वारा हो रही आलोचना की बैकग्राउंड में आया है.
क्या था वीडियो में?
इस क्लिप में चाणक्य की राजसभा में एक मंत्री कहते हैं - 'शरण देना या न देना आपके मानवीय दृष्टिकोण पर निर्भर करता है.' वहीं दूसरे मंत्री ने चेतावनी दी कि 'कल यही शरणार्थी तक्षशिला की भूमि पर अधिकार का दावा करेंगे.' विडंबना यह है कि चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का मौर्य साम्राज्य प्राचीन बिहार से ही जुड़ा है. वहीं, जहां आज के बिहार में मतदाता सूची को लेकर घमासान मचा है.
बीजेपी की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर राजनीति
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अक्सर इतिहास, संस्कृति और प्राचीन ग्रंथों के ज़रिए अपनी राजनीतिक विचारधारा को मजबूत करती रही है. इस मामले में भी पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए अवैध प्रवास पर सख्त रुख अपनाया है.
पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी लगातार ममता बनर्जी सरकार पर अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है. इस साल की शुरुआत में गृह मंत्री अमित शाह ने ममता सरकार पर आरोप लगाया था कि वह घुसपैठियों पर 'दया' दिखा रही है और सीमा पर बाड़बंदी रोक रही है – जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा है.
क्या है CAA और भारत की शरणार्थी नीति?
2019 में बीजेपी सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पास किया, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की प्रक्रिया आसान की गई. लेकिन इस कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. आलोचकों ने इसे भेदभावपूर्ण बताया क्योंकि इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया.
भारत ने अभी तक 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन या 1967 के उसके प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. भारत में कोई राष्ट्रीय शरणार्थी कानून भी नहीं है, जिससे ऐसे मामलों में निर्णय पूरी तरह सरकार के विवेक पर निर्भर करते हैं.
दुनिया में भी भारत को झेलनी पड़ रही है प्रवासी नीतियों की मार
दूसरी ओर अमेरिका समेत अन्य देशों में कठोर प्रवासी नीतियों का असर भारत पर भी पड़ा है. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका में इमिग्रेशन पर कड़ी कार्रवाई से भारत को अरबों डॉलर के रेमिटेंस (प्रवासी धन) नुकसान का खतरा बढ़ गया.
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